शाला में उपलब्ध संसाधन - उपलब्धता और पर्याप्तता, गुणवत्ता और उपयोगिता
गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए शाला में आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता एक महत्त्वपूर्ण आयाम है। किसी शाला के प्रभावी संचालन के लिए, बुनियादी अधोसंरचना तथा सक्रिय संसाधनों का उपलब्ध होना अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक शाला को अपनी बुनियादी सुविधाओं के संचालन के लिए भी कई संसाधनों की आवश्यकता होती है। इनमें अधोसंरचना (भवन, पेयजल, शौचालय आदि), मानव संसाधन (शिक्षक, रसोइया, शाला प्रबंधन समिति के सदस्य, सफ़ाई कर्मचारी, विद्यार्थी, बाल कैबिनेट आदि), वित्त, शालेय सामग्री इत्यादि प्रमुख हैं। सक्रिय संसाधन वे संसाधन होते हैं, जो सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में विद्यार्थियों को आरामदायी, सुरक्षित और तनावमुक्त परिवेश में रखते हैं। शाला संसाधनों की मुख्य विशेषता यह होनी चाहिए, कि ये संसाधन शाला में सभी के लिए सुरक्षित और महत्त्वपूर्ण सुविधाओं के रूप में उपलब्ध हों, तथा अधिकतम उपयोग हेतु सभी उपयोगकर्ताओं को सुलभ हों। अतः शालाओं के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि वे सुरक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता के मानकों के उच्च स्तर बनाए रखते हुए शाला में सीखने के लिए अनुकूल वातावरण बनाएँ।
आयाम 1 के मानक
आयाम 2
सीखना-सिखाना और उसका आकलन
विद्यार्थियों की उपलब्धि हेतु सीखना-सिखाना एक महत्त्वपूर्ण आयाम है। सीखने-सिखाने को प्रभावी बनाने के लिए, इन दोनों क्रियाओं की ऐसी योजना बनाना आवश्यक है, जिसमें सीखने का उत्कृष्ट वातावरण निर्मित हो। अतः सीखने के अनुभवों को इस प्रकार से आकार दिया जाए जो सीखने और सिखाने में अधिकतम प्रभावी हो और सीखने की प्रक्रिया विद्यार्थियों के लिए एक यादगार अनुभव बन जाए। इस प्रक्रिया की सफलता के लिए आवश्यक है कि शिक्षक को विद्यार्थियों की सीखने की आवश्यकताओं और प्रक्रियाओं की समझ हो। इसी प्रकार आकलन, शिक्षण-अधिगम का एक अभिन्न पहलू है, और विद्यार्थियों के उपलब्धि स्तर की प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण सूचक। यह शिक्षकों को उनकी कक्षा शिक्षण की प्रभावकारिता पर सोचने के लिए एक ठोस आधार प्रदान करता है। शिक्षक के लिए विषयवस्तु से सम्बन्धित ज्ञान और शैक्षणिक कौशल, दोनों अत्यंत आवश्यक हैं। ये दोनों ही सीखना-सिखाना और आकलन के लिए शिक्षक के दृष्टिकोण को निर्धारित करते हैं।
आयाम 2 के मानक
आयाम 3
विद्यार्थियों की प्रगति, उपलब्धि और विकास
शालेय शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य है विद्यार्थियों का समग्र विकास और अच्छी शिक्षा। इसमें शामिल है विद्यार्थियों का संज्ञानात्मक (Cognitive), भावनात्मक (Affective) और कौशलात्मक (Psychomotor) विकास। इसके लिए शालाओं का लक्ष्य होता है कि सभी विद्यार्थी पाठ्यक्रम की सह-शैक्षिक गतिविधियों में भाग ले तथा उनकी प्रगति का अनुवीक्षण हो। इससे शैक्षिक प्रगति के अतिरिक्त उनका व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण भी होता है। इसके लिए आवश्यक है कि शाला उन्हें सह-शैक्षिक क्षेत्रों में भी विकास के अवसर प्रदान करे जिससे उन्हें स्वयं की प्रतिभा और सामाजिक कौशलों के विकास के लिए अवसर प्राप्त हों। आयाम के इस क्षेत्र में इनके विकास के विभिन्न पहलुओं को सम्मिलित किया गया है। इस आयाम के सम्बन्ध में आर.टी.ई. की कण्डिका 29 (2) पूर्व में उल्लेखित की जा चुकी है।
आयाम 3 के मानक
आयाम 4
शिक्षकों का कार्य-प्रदर्शन और उनका व्यावसायिक उन्नयन
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों के कार्य-प्रदर्शन (performance) का सही प्रबंधन (मैनेजमेंट) किया जाना ज़रूरी है। यह उनके प्रदर्शन की समीक्षा करने और उनका व्यावसायिक उन्नयन करने की एक सतत और व्यवस्थित प्रक्रिया है। इससे उनकी क्षमताओं की पहचान और कौशलों का विकास होता है।
आयाम 4 के मानक
आयाम 5
शाला नेतृत्व और शाला प्रबंधन
कहा जाता है ‘यथा राजा तथा प्रजाः’। किसी भी संस्था का विकास कुशल नेतृत्व और सशक्त प्रबंधन (मैनेजमेंट) के बिना संभव नहीं है। यह आयाम शाला-प्रमुख के इन्हीं गुणों पर केन्द्रित है।
आयाम 5 के मानक
आयाम 6
समावेश, स्वास्थ्य और सुरक्षा
शिक्षा के सार्वभौमिकरण का मूलमंत्र है “हर विद्यार्थी सीख सकता है”। विभिन्न लिंग, जाति अथवा सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से होने के बावजूद हर विद्यार्थी सीख सकता है, यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम भी कहता है। तदनुसार विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले सभी विद्यार्थियों को शाला के दायरे में लाना अनिवार्य हो जाता है।
आयाम 6 के मानक
आयाम 7
समुदाय की सहभागिता
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शाला को समुदाय के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। ‘समुदाय’ में शामिल हैं – शाला प्रबंधन समिति के सदस्य, शिक्षक, विद्यार्थी, माता-पिता/पालक, स्थानीय निवासी, स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि, सांस्कृतिक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों के सदस्य आदि। शाला के संसाधनों का उपयोग, विद्यार्थियों का समग्र विकास और शाला का बेहतर प्रबंधन, समुदाय के साथ शाला की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर है। इसलिए शाला और समुदाय दोनों के लाभ के लिए इनमें एक सार्थक संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से प्रत्येक शाला में शाला प्रबंधन समिति का गठन किया गया है। ये समितियाँ शाला विकास की योजना बनाने, उनका क्रियान्वयन करने, इसके लिए संसाधन जुटाने और इन कार्यों की निगरानी के लिए योगदान देती हैं। नामांकन, ठहराव, सीखने-सिखाने और सीखने के परिणामों में सुधार करने में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
आयाम 7 के मानक
मूल्यांकन से शाला उन्नयन की एक सकारात्मक पहल
सीखने-सिखाने के लिए भयमुक्त एवं आनंददायी वातावरण का निर्माण
समावेश के वातावरण का निर्माण
प्रत्येक विद्यालय अपने परिप्रेक्ष्य, आकार, परिस्थिति और संसाधन के संदर्भ में विशिष्ट होता है।
प्रत्येक विद्यालय अपनी वर्तमान गतिविधियों को आलोचनात्मक विश्लेषण के आधार पर अपने सशक्त एवं कमज़ोर पहलुओं की पहचान करे और अपनी न्यूनताओं को दूर करने का प्रयास करे।
शाला मूल्यांकन अपने अनुभवों के सामूहिक आदान-प्रदान और चिंतन के माध्यम से शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को समृद्ध करता है।
शाला मूल्यांकन एक साधन है और शाला उन्नयन लक्ष्य
सबको शिक्षा अच्छी शिक्षा
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश
शाला सिद्धि के बारे में
“शाला सिद्धि – हमारी शाला ऐसी हो” कोई नया कार्यक्रम नहीं हैं अपितु पूर्व वर्षों में शिक्षा की गुणवत्ता
के क्षेत्र में किये गए विभिन्न प्रयासों को एकीकृत कर इन्हें सुनियोजित रूप से क्रियान्वयन करने का प्रयास
है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु शाला का उन्नयन से तात्पर्य यह है कि शाला का विकास इस प्रकार से हो कि
शाला की अकादमिक एवं सह-अकादमिक प्रक्रियाओं से विद्यार्थियों को भयमुक्त एवं आनंददायी वातावरण
में सीखने के अवसर मिलें और प्रत्येक विद्यार्थी अपनी आयु के अनुरूप निर्धारित दक्षताएँ और कौशलों को
अर्जित कर सके।
कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य
1
शालाओं के मूल्यांकन की प्रक्रिया विकसित करने के लिए तकनीकी रूप से उत्तम वैचारिक प्रक्रिया का निर्माण
करना तथा उनके लिए प्रक्रिया और उपकरण (प्रपत्र) निश्चित करना।
2
शाला मूल्यांकन हेतु राज्य में एक संस्थागत प्रक्रिया निश्चित करना तथा उसका क्रियान्वयन करना।
3
शाला मूल्यांकन हेतु शालाओं तथा सम्बन्धित अधिकारियों को सक्षम बनाना जिससे शालाएँ निरंतर उन्नति कर
सक्षम बनी रहें।
4
शाला को इस प्रकार सहयोग देना कि वे अपनी आवश्यकताओं का विश्लेषण कर उनकी पूर्ति हेतु निरंतर प्रयास
करने में सक्षम हों।
शाला सिद्धि कार्यक्रम की प्रक्रिया
1स्व मूल्यांकन
2बाह्य मूल्यांकन
3शाला उन्नयन कार्ययोजना
4फ़ॉलोअप करना
शाला सिद्धि के आयाम एवं मानक
आयाम
गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं, जैसे शाला में उपलब्ध भौतिक
संसाधन, प्रशिक्षित शिक्षक, उनका व्यावसायिक उन्नयन, कक्षागत प्रक्रियाएँ, शैक्षिक सहायक सामग्री की
उपलब्धता, उनका उपयोग, शाला में शाला-प्रमुख की भूमिका, शाला के विकास में समुदाय का सहयोग
इत्यादि। इन क्षेत्रों को इस कार्यक्रम में मूल्यांकन के आयाम कहा गया है।
मानक
प्रत्येक आयाम शाला के सुधार हेतु एक बड़ा कार्य क्षेत्र है, इसलिए प्रत्येक आयाम को छोटे-छोटे
मानकों में बांटा गया है।
शाला सिद्धि - हमारी शाला ऐसी हो मूल्यांकन से उन्नयन
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से अभिप्राय -
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से तात्पर्य यह है कि शाला का विकास इस प्रकार से हो कि शाला की अकादमिक एवं सह-अकादमिक प्रक्रियाओं से विद्यार्थियों को भयमुक्त एवं आनन्ददायी वातावरण में सीखने के अवसर मिलें और प्रत्येक विद्यार्थी अपनी आयु के अनुरूप निर्धारित दक्षताएँ एवं कौशल अर्जित कर सके।
शाला सिद्धि अंतर्गत शेष शालाओं के फॉलोअप हेतु राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा निर्देश जारी - दिनांक 15 अक्टूबर 2018 को राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा शाला सिद्धि सिद्धि अंतर्गत चयनित शेष शालों हेतु निर्देश जारी कर दिए गए. पूर्व में लगभग 1800 चैंपियन शालाओं का फॉलोअप पोर्टल पर जिलों द्वारा दर्ज कर दिया गया है. इस चरण में शेष 23000 शालाओं का फॉलोअप किया जायेगा.
चैंपियन शालाओं के राज्य स्तरीय सेमिनार का आयोजन राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा दिनांक 28 एवं 29 सितम्बर 2018 को एप्को,भोपाल में किया गया. इसमें 51 जिलों के 204 चयनित चैंपियन स्कूलों ने सहभागिता की. कार्यक्रम में मुख्य सचिव स्कूल शिक्षा श्रीमती दीप्ति गौड मुकर्जी, संचालक राज्य शिक्षा केंद्र आईरिन सिंथिया जे. पी. ने सहभागिता की. आर्क सेंट्रल टीम से उर्मिला चौधरी ने भी कार्यक्रम में सहभागिता की.
मध्य प्रदेश की सभी शासकीय शालाओं में नवीन सत्र का प्रारंभ 02 अप्रेल 2018 से किया गया है। इस सत्र के प्रारंभ में ‘स्कूल चलें हम’ कार्यक्रम एवं ‘जॉयफुल लर्निंग’ गतिविधि का आयोजन सभी शालाओं में किया जा रहा है। शालाओं में आनंददायी वातावरण का निर्माण करने हेतु ‘जॉयफुल लर्निंग’ गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। इसका लक्ष्य शाला में बच्चों हेतु मजेदार वातावरण का निर्माण करना तथा बच्चों की सहभागिता को बढ़ावा देना है। साथ ही इन गतिविधियों के माध्यम से बच्चो की मूलभूत दक्षताओं में वृद्धि का कार्य भी किया जाना है।
प्रत्येक विकासखंड से कम से कम एक जनशिक्षा केंद्र को शाला-सिद्धि उत्कृष्ट जनशिक्षा केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा।
शाला सिद्धि कार्यक्रम अंतर्गत अकादमिक वर्ष 2017-18 में सभी जनशिक्षा केन्द्रों से नवीन चयनित 12,396 शालाओं में स्व मूल्यांकन एवं बाह्य मूल्यांकन कर कार्य योजना तैयार की जाएगी।
“मध्य प्रदेश शाला सिद्धि पोर्टल का अनावरण मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा शासकीय उच्चतर माध्यमिक मॉडल स्कूल, टी टी नगर, भोपाल में दिनांक 3 फरवरी को किया गया।